कविता

“जो हम-तुम मिले नहीं हैं”

आसान नहीं है, तुझपर कविता लिखना,  कि जैसे , सागर को सरिता लिखना, मगर मैंने लिखा, उन सभी बातों को, जो मुझे तुझमे दिखा,, कि जो तेरे कजरारे नैन, जैसे अमावस की रैन, उसमे मुझे शायद  किसी का इंतजार दिखा,, जो तुम्हारी पतली लकड़ी जैसी, काया से चिपकी, निहारना चाहती है, बस उन्हींको, तुम लड़की […]

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“हम भारत के युवा हैं,”

हम भारत के युवा हैं, मगर अब तक बेजुबाँ है,, हमे ना अल्लाह चाहिए, हम ना हिं राम चाहते हैं, अपनी बेरोजगार हाथों के लिए, हम तुमसे काम चाहते हैं,,हम भारत के युवा है, हमारी चाहत नवा-नवा है, हमे ना गीता चाहिये, ना हम कुरान चाहते हैं, कह सके दिल की अपने बातो को, इसके

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थियोड़ो-लाइट

हर किसी की अपनी एक कहानी है, की है हर कोई दीवाना यहां, और हर कोई यहाँ दीवानी है, हर किसी के ऊपर छायी जवानी है, हर कोई लगा है,  किसी ना किसी के ध्यान में, हम सब बैठे हैं, प्रधौगिकी प्रशिक्षण संस्थान में, आम के छावं में, भरी दोपहरिया, गड़ा है शरिया, और गड़ा

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अदले-बदले

अरे ओ बदलाव के वाहक, खेल रहे जो अदले-बदले, छन भर में बदल जाते हो ऐसे, की जैसे, गिरगिट अपना रंग बदले, बदलाव की इस कड़ी में, तुमने अपना निजाम बदले, ओ बदलाव के वाहक, क्या मिला तुम्हे इसके बदले?क्या निजाम के काम बदले ? नही! उसने केवल नाम बदले, मुल्लो के अल्लाह बदले, हिन्दुओ

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“नूतन-पुरातन”

​नूतन और पुरातन , के झंझट मे, आखिर क्या नवीन है, इसकी पहचान करने में, शायद तू प्रवीण है, अरी ओ नादान सुनो, कुछ भी नया नहीं है यहां, हर चीज पुरानी है, हर कोई हर पल, पुराना होता जाता है, वक्त आता है, वक्त बीत जाता है, और वक्त के साथ, सब हो जाता

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“ट्राम_की_सवारी”

टन-टन-टन-टन-टन खड़े-खड़े चाचा मार रहे घण्टी, चल रही छोटी रेलगाड़ी हन-हन, सामने बैठी हैं मोटी अंटी, पकड़ी हुई है तेज रफ्तार, हम भी हैं उसमें सवार, तभी चाचा ने ब्रेक है मारी, हुए अचंभित सभी सवारी, दे रहें हैं किसीको गारी, अबे हट, दिखता नहीं है, क्या तुझे गाड़ी चलाने का होश है, रगड़ दूंगा

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ढलान

उम्र जब ढलने लगती है, शुष्क हो जाती हैं नज़रें, मद्धम होने लगते हैं नज़ारे, हम अपनी जिविनि नैया, खीच लाते हैं किनारे, ढूंढने लगते हैं,  पुनः बिछड़े सहारे, ढूंढते हैं कोई आस, की जब कोई ना हो पास, ढूंढते हैं उन रिश्तों को, की जिनमे कमी ढूंढा करते थे, मगर वो नही मिलते, की

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कुछ बेतुके प्रश्न

सत्य क्या है? कहाँ है? जो मिथ्या नही है, या जहाँ मिथ्या नही है, तो क्या, सत्य का वजूद, मिथ्या के आसरे है। रौशनी क्या है, कहाँ है, जो अंधेरा नही है, जहाँ अंधकार नही है, तो क्या ! रौशनी का वजूद, अंधकार के भरोसे है। ज्ञान क्या है? कहाँ है? एक मष्तिस्क की परिकल्पना,

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Poem in Hindi | जन_गण_मन_अधिनायक_जय_हे

अहो कविवर, अहो गुरुवर ज्ञान-विज्ञान के तरुवर कहाँ हो तुम तुम्हारा जन गण मन आज सचमुच राष्ट्रगान हो गया है आज सचमुच अधिनायक की जय है समझता खुद को अविजित अजय है आज फिर लोक को तंत्र से भय है सत्ता को सत्य पर संशय है निशा जगमग दिवस अंधकारमय है तेरे जन गण मन 

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buddha-dordenm

प्रार्थना: बुद्धम शरणम गच्छामी

हर किसी के दिल में प्यार रहे ना कहीं कोई हथियार रहे ना कोई किसी से युद्ध करे, प्रगति पथ ना अवरुद्ध करे बस इतनी सी कृपा बुद्ध करेसब सत्य अहिंसा अपनावें ना किसी को मारे,ना कोई मरे कोई सच के संगति ना छोड़ें हो सब मिथ्या के विरुद्ध खड़े बस इतनी सी कृपा बुद्ध

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