“दोस्तो के खातिर”

अंधा हो गया हूं,

जबसे दोस्ती की है,

दुश्मनी थी 

तो पारखी हुआ करता था,
लंगड़ा हो गया हूं,

जबसे दोस्ती कि है,

दुश्मनी थी

तो मै तेज भागा करता था,
बहरा हो गया हूं,

जबसे दोस्ती की है,

दुश्मनी थी 

तो सब कुछ सुना करता था,
पागल हो गया हूं,

जबसे दोस्ती की है,

दुश्मनी थी,

तो सबकुछ सोच-समझ के करता था,
ना जाने क्यों, अब

ये पागलपन, ये बहरापन,

ये अंधापन, ये लंगड़ापन,

अच्छा लगता है,
बूढा हो रहा था मैं,

दुश्मनों के बीच,

दोस्तो के बीच ये दिल,

नन्हा बच्चा लगता है,
दोस्तो के खातिर

शायद अब मुझे सारे 

अवगुण स्वीकार है,

उन्ही से हमको प्यार है,

साथ अब अच्छा लगता है।