​कुलभूषण और कसाब

खबर है पाकिस्तान एक भारतिय नागरिक , जिसके बारे में उसका दावा है कि वो रॉ का जासूस है और पाकिस्तानी पुलिस ने उसे जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया है, को फांसी की सजा सुनाई गई है। उसे ये सजा पाक के विधि न्यायालय ने नही वरन सैन्य अदालत मे कोर्ट मार्शल के तहत दी गई है।

   कुछ दिनों पहले सरबजीत सिंह की मौत पाकिस्तान के जेल में हुई थी जो बरसों से पाकिस्तानी जेल में बंद था। पाकिस्तान की सरकार कुलभूषण को फाँसी पर लटका कर भारत को कड़ा संदेश देने की कोशिस मे है।

भारत सरकार ने पहले तो कुलभुषण से पल्ला झाड़ लिया था, लेकिन जन दबाव के कारण इस राष्ट्रवादी सरकार ने बयान जारी कर, कहा है कि”अगर पाक कुलभुषण को फाँसी की सजा देता है तो भारत इसे एक भारतीय नागरिक की पूर्वनियोजित हत्या मानेगा।” राष्ट्रवादी भाजपा की सरकार ने इस मामले में किसी भी हद तक जाने की बात कही है और इस बार उसे विपक्ष का भी समर्थन हांसिल है।याविपक्ष का कहना है कि अगर मोदी जी कुलभुषण  को बचाने में नाकाम रही तो हम इसे सरकार की विफलता मानेंगे।सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, और ऐसी नौबत किसी और के कारण नही बल्कि उसकी ही राष्ट्रवादी उन्माद को बढ़ावा देने के कारण आई है।
    अमूमन ऐसे किसी भी मामले में, जब कोई पाकिस्तानी नागरिक भारतीय सीमा क्षेत्र में पकड़ा जाता है तो उसे सीधे तौर पर आतंकवादी या जासूस मान लिया जाता है।

यही हाल हमारे पड़ोसी का भी है, व्व भी जब कोई भारतीय पाक सिमा क्षेत्र में पकड़ा जाता है तो उसे भी षड्यंत्रकारी मान लिया जाता है। यहाँ तक तो कोई परेशानी नहीं है लेकिन बात जब राजनितिक नफे नुकसान से जुड़ जाता है, तो ऐसे मामले में न्याय की उम्मीद धूमिल हो जाता है।

भारत और पाकिस्तान आजादी के बाद भले ही अलग मुल्क हो, किंतु राजनितिक सोच में समानता दोनों देसो में सामान है। वर्तमान में दोनों देश की जनता राष्ट्रवादी सोच वाली

है जो एक दूसरे के प्रति वैमनस्य के भाव से ग्रस्त है। पाकिस्तान की पैदाइश ही धर्म के आधार पर हुई, सो वहां धर्म हो राष्ट्र है, लेकिन वर्तमान की भारत सरकार भी धार्मिक विद्वेष की भावना को भड़काने की काम में सलंग्न है।

 जो लोग अभी कुलभुषण के फाँसी का विरोध कर रहे है, और कह रहे है कि इस मामले में उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन नही किया गया। क्या वे भारत में इसके पक्षधर थे, बिलकुल नही ।

किसी भी आतंकवादी के पकड़े जाने पर हर भारतीय की यही प्रतिक्रिया होती है कि टांग दो साले को, कोई सुनवाई नहीं होनी चाहिये, शूट एट साइट आदि आदि। अजमल कसाब के मामले में हम क्या मानते थे कि सरकार उसे बैठा के बिरियानी खिला रही है, हम जल्द से जल्द उसे फांसी दिलवाना चाहते थे। अब आप कह सकते हैं कि कुलभुषण और कसाब की तुलना नही की जा सकती,  कसाब एक ट्रेंड आतंकवादी था जिसने हजारो जाने ली थी, तो पाकिस्तान भी कुलभुषण को एक आतंकवादी मान रहा है, और वो उन सभी प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधे फाँसी की सजा सुना दिया, जिसका हम हर मामलो में विरोध करते रहे है, चाहे वो अफजल गुरू का मामला हो या कसाब का या फिर बुरहान वाणी का मामला हो।

हर मामले में हमने त्वरित कार्यवाही की मांग की लेकिन हमारा संविधान इसकी इजाजत नही देती थी। मगर पाकिस्तान का तो कोई संविधान ही नहीं है। वहाँ सेना का अलग संविधान , सरकार का अलग संविधान, और जनता का अलग संविधान है।

ऐसे में वहाँ से न्याय की उम्मीद करना तो बेमानी है। कोई भी सरकार ऐसे मुद्दे पर कुछ नही कर सकती, सो उसे चुप चाप देखे।