Poem in Hindi | जन_गण_मन_अधिनायक_जय_हे

अहो कविवर, अहो गुरुवर

ज्ञान-विज्ञान के तरुवर

कहाँ हो तुम

तुम्हारा जन गण मन

आज सचमुच राष्ट्रगान हो गया है

आज सचमुच अधिनायक की जय है

समझता खुद को अविजित अजय है

आज फिर लोक को तंत्र से भय है

सत्ता को सत्य पर संशय है

निशा जगमग दिवस अंधकारमय है

तेरे जन गण मन 

अधिनायक को भा रहा है

संग सब उसके गा रहा है, 

तो क्या फर्क पड़ता है

जो ना सूर ताल लय है

अबकी सरकारें, 

जन-धन की बात करती हैं

अपने मन की बात करती है

बस सुनती नही है

है कविवर समय की पुकार है

पुनः एकबार आओ,

इस नफरत भरे भारत को

प्रेम गान सुनाओ

इस बेसुरे लोगो को

मधुर तान सुनाओ

मर रही है कलम 

उसकी जरा जान बचाओ

 अधिनायकों के चुंगल से

धरा का प्राण बचाओ

एकबार फिर आओ-

एक बार फिर आओ
——गौतम-अज्ञानी——-

#जन_गण_मन_अधिनायक_जय_हे