garmi ki basaat

poem hindi | गर्मी की बरसात

आज जब मुद्दतो बाद जब

घटा गहराने लगी

तो हवा को को आया तैश

हो प्रचंड शक्तियों से लैश

मेघो को उड़ाने लगी

उड़ने लगे टालियों पर बिथरी

सूखने को चड्डी बनियान

उड़े कई चिड़ियों के घोंसले

गिरे, टूटे कई अंडे, 

निकले अजन्मे प्राण

खैर उन टूटे अंडों की 

कौन चिंता करता है

रोज टूटते हैं लाखों

तवे पर तलता है

लेकिन हवे की इस दुस्साहस पर

मेघ को क्रोध आया

वो गरजा, गुर्राया

उन्मत्त आँधी की पीठ पर

बिजलियों का चाबूक लगाया

उसे मार भगाया

उसकी डब-डबाई आंखों से

 गिरी बूंदे, बड़ी-बड़ी

उन अंडों की दुर्दशा पर

आज वो दहाड़ मार कर रोइ

हम जालिमो को अच्छा लगा

मेघ का ऐसे दहाड़ मार कर रोना

उन अंडों से हमे क्या काम था

हमे तो बस 

आज गर्मियों से आराम था,,