नूतन और पुरातन ,
के झंझट मे, आखिर
क्या नवीन है,
इसकी पहचान करने में,
शायद तू प्रवीण है,
अरी ओ नादान सुनो,
कुछ भी नया नहीं है यहां,
हर चीज पुरानी है,
हर कोई हर पल,
पुराना होता जाता है,
वक्त आता है,
वक्त बीत जाता है,
और वक्त के साथ,
सब हो जाता है पुरातन
हो जाती हर बात पुरानी,
कहता ये गौतम अज्ञानी,
केवल तेरा नूर नूरानी।।