प्रेम परीक्षा परिणाम कहानी श्रृंखला की दूसरी कड़ी में हम बात करेंगे एक नए मित्र की, जिन्हें हायर सेकंडरी के दौरान प्रेम हो जाता है,और फिर कैसे प्रेम पथ पर चलते हुए पढ़ाई पीछे छूट जाती है। मैं, राजीव, सौरव(नाम परिवर्तित), विक्रम और मनोज हम पांच पकिया दोस्त हैं। सेकेंडरी ,हायर सेकंडरी, सब साथ में पढ़े। सबकी अपनी अपनी एक प्रेम कहानी है।
सौरभ की कहानी ये है कि, जब हमलोग सेकेंडरी पास किये तो हायर सेकेंडरी के लिए बगल के हीं फेमस हिंदी मीडियम स्कूल (लाजपत हिंदी हाय स्कूल)में दाखिला लेते हैं। मैं विक्रम और अनूप आर्ट्स विषय में नामांकन करवाते हैं और सौरभ वाणिज्य विभाग में दाखिला लेता है। कला विभाग में हमलोग का विषय इतिहास, भूगोल और राजनीती विज्ञान थी, सो हमे पढ़ने कि कोई जरुरत महसूस नही हुई। लेकिन उसका तो कॉमर्स था, ऊपर से अकाउंट्स, vrf, इकोनॉमिक्स, अदि विषय। सो इन सबको सँभालने के लिए उसने ट्यूशन ज्वाइन किया। रमेश बाबु उनदिनों बेस्ट कॉमर्स टीचर थे, हमारे सभी मित्र जो वाणिज्य विषय लिए थे उन्ही के पास पढ़ते थे।
वो भी वहीं गया, और पढ़ने लगा।
देखने मे वो कुछ ज्यादा आकर्षक नही था।दुबला पतला देह, रंग गेंहुआ, किसी से बेमतलब बात न करने वाला, अपने काम से कम रखने वाला लड़का था। लेकिन एक गुण उसमे जरूर था, उसके बातो में गजब का आकर्षण था, गजब की शालीनता ऐसी की लड़कियां शर्मा जाए। उसके अंदर लड़कियों वाले गुण भी थे थोड़े बहुत, तभी तो लड़कियां अनायास ही आकर्षित हो जाती थी, और हम सभी मित्र उसे लल्ली बुलाया करते थे। माँ के न होने के कारण घर के सभी काम वो हीं करता था, इसलिए वो अच्छा खाना बनाना भी जानता था और बाजार करने के तौर तरीके भी मालूम थे।
कुल मिलाकर वो एक आदर्श शहरी लड़का था।
ट्यूशन में वो मन लगाकर पढ़ने लगा,और कुछ ही दिनों में रमेश बाबु ने जान लिया की लड़के में कुछ खास बात है।
वहाँ उनदिनों दो बैच चलते थे, लड़को के अलग और लड़कियों के अलग बैच। आप पूछेंगे अलग अलग क्यों, तो पहले हिं बता दू लड़के फुल्ल खिद्दीरपुरिया थे, एकदम फुलप्रूफ छिछोरे टाइप, सो रमेश बाबु ने बैच अलग किया हुआ था। वैसे रमेश बाबु भी कम इंट्रेस्टेड नही थे इन मामलो में, अगर कोई लड़की सवाल करे तो जवाब बड़े प्रेम से देते थे, लेकिन जब कोई लड़का पूछे तो मानो उनको कुत्ता काट जाता था।
खैर जो भी हो जब रमेश बाबु जान गए की लड़के में दम है, तो वे उसे उन खिद्दीरपुरिये छिछोरों से अलग करने की सोचे, ताकि उसका और विकास हो सके।
इन बातों के मद्देनजर रमेश बाबु सौरव को लड़कियों वाली बेच में दाल दिए। लड़कियां लड़को के अपेक्षा अधिक मेहनती होती है, और वो अपने काम से काम रखतीं है, ऐसा सर का मानना था।
अब नए ग्रुप में जाकर सौरव और ज्यादा पढाई करने लगा, शायद उसका ये मानना था कि उसके पढ़ाई और नॉलेज देख कर सर तो इम्प्रेस्ड हैं ही, लड़किया भी हो जाएगी। और उसका ये सोचना सही था, लड़कियां धीरे धीरे उससे इम्प्रेस हो गयी, और उसका उनलोगों से मेलजोल बढ़ गया।
पढ़ाई के मामले में उसके टक्कर का सिर्फ एक लड़की थी। राधा नाम था उसका, सौरव की तरह हीं सौम्य शालीन और सबसे कम बात करने वाली। जब ट्यूशन की सारी लड़किया सौरव से बात करने को ललचाई रहती, राधिका उससे कुछ नही बोलता। व्व सीधे क्लास में आती और क्लास खत्म होने पर निकल जाती।
देखने में कोई खास खूबसूरत भी नही थी, दुबली पतली, सांवर रंग, सामान्य कद काठी, लेकिन एक विशेषता थी उसमें, उसकी मुस्की कटीली थी, सौरव जब भी सर से कुछ पूछता, और उसकी तरफ देखता,तो वो वही कटीली मुस्की मार देती। जिससे सौरव झेप जाता।
सौरव ना जाने क्यों वो धीरे धीरे पसंद आने लगी थी, जबकि ट्यूशन में एक से बढ़कर एक लड़की थी।
सौरव अब उससे बात करने के बहाने ढूंढने लगा था, लेकिन चुकी दोनों पढ़ाई में इक्वल थे सो, दोनों का अपना ईगो भी था।
बात वो भी करना चाहते थे, बात ये भी करना चाहता था, लेकिन पहल कौन करता है,ये देखना चाहता थ।
फिर, अचानक एक दिन राधा ने सौरव का सेल नंम्बर मांगने लगी। सौरव अचकचाया, कि भाई इतने दिनों से तो टोकती भी नही थी, आज अचानक सूरज पश्चिम से क्यों उग आया।
वो पूछ बैठा- क्यों चाहिए ?
“अरे कुछ कुछ सवालो पे अटक जाती हूं, क्या तुमसे पूछ नही सकती” राधा बोली।
“क्यों नही” सौरव तपाक से बोला।
उसने तुरंत उसका नम्बर माँगा और उसपे कॉलबैक किया। दोनों ने एकदूसरे के नंबर सेव कर लिए।
सौरव बहुत खुश था, और हो भी क्यों ना उसे उसके क्रश का नंबर जो मिल गया था।
कुछ दिनों तक तो फोन पर केवल सवाल जवाब होते रहे, लेकिन बाद में सौरव बेवजह भी कॉल करने लगा, राधा भी उससे बात करने लगी। खूब बाते हुई, जब कॉलिंग चार्ज महंगा लगने लगा, तो मैसेज भेजने लगे। अब सौरभ का ध्यान पढाई से हट गया था, उसे केवल राधा के कॉल या मैसेज का इंतजार में रहने लगा। सौरव अपनी लाइफ की बाते दिल खोलकर राधा को बताने लगा, वो भी अपनी परेशानियां सौरभ के साथ शेयर करती थी। दोनों और नजदीक आने लगे, बात बात-चित से मेल-जोल तक पहुच गया। दोनों मिलने लगे।
सौरभ अब पढाई से पूरी तरह कटने लगा, ट्यूशन में भी अब उसे वो इज्जत नही मिल रही थी। किताब कॉपी से दूर वो मोबाइल में घुस गया, दिन रात सिर्फ मैसेज मैसेज।
दोस्तों ने तो उसका नाम ही टाइपराइटर रख दिया था।
वैसे तो वो अपनी परेशानी किसी से शेयर नही करता था, पर मैंने उसकी समस्या को भांप लिया था। जब मैंने उससे पूछा की “क्यों रे टाइपराइटर खाली टाइपिंग चल रही है या पढ़ाई भी कर रहा है, तेरा बहूत शिकायत कर रहे थे तेर भैया। साले छोड़ दे ये सब वो तुझे बर्बाद कर देगी।”
” अबे वो वैसी लड़की नही है,” सौरव बोला।
“हां बेटा जब जाओगे भाड़ में तो पता चलेगा कैसी लड़की है वो”, मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा।
बात आई गयी हो गयी, वो अपने ढर्रे पर चलता रहा, पढ़ाई से कोसो दूर हो गया।
देखते ही देखते वार्षिक परीक्षा आ गया, राधा अब उससे दुरी बनाने लगी, आखिर एग्जाम का बहाना जो मिल गया। अब वो कभी कभार मैसेज करती, कॉल तो ना के बराबर।हरपल उसे राधा के मैसेज का इंतजार रहता था, बार बार मैसेज करता, रिप्लाई नही आने पर परेशान हो जाता। उधर राधा पूरी तरह पढाई पर फोकस किये हुए थी, सो उसने इस पागल आशिक से दूरी बना ली।
परीक्षा आया, सौरभ बेमन से बिना किसी तयारी के परीक्षा दे रहा था।
उधर राधा पुरे जोस के साथ परीक्षा देने में जुटी थी।
दिन बीते और रिजल्ट घोषित हुआ तो परिणाम उम्मीद के मुताबिक ही था, राधा पचासी प्रतिसत अंक के साथ पास हुई थी, और सौरभ के अंक का अंदाजा आप खुद लगा लीजिये।
इन तमाम वाकयो के बाद अब उसने अकादमिक पढाई से सन्यास ले लिया है, और आजकल अपने भाई की तरह मर्चेंट नेवी बनकर ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की कोशिश में लगा है। सायद वो अब राधा को कुछ बनकर दिखाना चाहता है।