हर साल ऐसा होता है
कि, जब बाढ़ आती है
हम पानी में होते हैं
वो हवा में होता है,
वे हवा से फेंकते हैं पैकेट
जैसे कोई फेकता है कुत्ते को रोटियां
जिसे लूटने को छिलती हैं बोटियाँ
ऐसे ही चलता है सत्ता का सेक्स रैकेट
इस असहाय हालत में हम रोते भी नहीं हैं,
कि कहीं हमारे आँशुओ से
बढ़ ना जाए कोसी का जल स्तर
अपने मिलते नहीं और हम खोते भी नहीं हैं।
थर थर कांपता है गात,
सभीका जी छन छन करता है,
जब बीत जाती है रात,
दिवस में वो हवाई सर्वेक्षण करता है,
काश ऐसा हो जाता,
अगली बार जब बाढ़ आता,
कि हम पानी में उड़ सकते,
और वो हवा में डूब जाता।
Bahut kamal ki rachna hai bhai.