घर का बड़ा बेटा होना काफी नुकसानदेह होता है, हां बचपन में बहुत ही लाभदायक था, क्योंकि परिवार का पूरा अटेंशन मुझे प्राप्त था, हमेसा गोद में ही रहा। हर किसीका भरपूर प्यार मिला। लेकिन बड़े होने पर सारी जिम्मेवारी भी बड़े बेटे के सर पर ही पड़ती है।
अव्वल तो सबसे पहले कमाने की जिम्मेदारी और ऊपर से एक बहु लाने की जिम्मेवारी क्योंकि माँ अब बूढ़ी होने लगी है, और बहन ससुराल बसने लगी है।मतलब बड़ा होने की सारी बड़प्पन तेल लेने चली जाती है। सिर्फ जिम्मेदारी ही जिम्मेदारी बचा रह जाता है। उसदिन मेरी शादी को लेकर जब मुझे देखने के लिए लड़कीवाले आये, तो मैं अपने घरवालों पर बहुत गुस्सा था। दरअसल मैंने घरवालो को साफ बता दिया था कि कम से कम 2020 तक मुझे शादी नही करनी है, लेकिन फिर भी बहाना बनाकर उनलोगों ने मुझे जबरन कलकत्ता से बुलवा लिया था।
अब जब लड़कीवाले पहुंच गए तो मैं उनके सामने जाने को तैयार नहीं था। काफी मान मनौव्वल के बाद हम वहां गए तो मन मे तय कर लिया था कि, किसी भी सवाल का सीधे जवाब नही देना है।
जब दलान में पहुँचे तो देखा कुछ मुछवाले, कुछ निमोच्छे चौकड़ी मारे बैठे हुए हैं।बीच में एक कुर्सी मेरे लिए खाली रखी गयी है।
माँ ने हिदायत दी थी कि जाते ही सबको गोड़ छू के प्रणाम करना है। पहले तो मन किया कि नही करते हैं, लेकिन घरेलू संस्कार के कारण सबको गोर लाग लिए।
जब गोर लाग के हो गया तो मुछ वाले ताऊ ने बैठने का इशारा किया, मैं नजरें झुकाए बैठ तो गया लेकिन निकलने की बहुत जल्दी के साथ। मैंने अपने झुके नजरों से उन लोगों के जूते का मुआयना किया, क्योंकि किसी महानुभव ने कहा है कि अगर किसीकी औकात जाननी हो तो उसके जूते के तरफ देख लो।
अब जब बैठ गया तो, एक आदमी जो उम्र में मुझसे कुछ ही बड़ा होगा और उन सबमे सायद सबसे ज्यादा पढ़ लिखा जान पड़ता था, क्योंकि उसने चश्मा पहन रखा था, ने सवाल करना सुरू किया।
“आपका शुभ नाम” , उसने चश्मे के नीचे से मुझे घूरते हुए पूछा।
” गौतम कुमार”, मैंने भी घूरते हुए जवाब दिया।
“बाबूजी के नाम?”, उसने फिर पूछा।
“श्री गोपाल साह”,मैंने फिर घूरते हुए जबाव दिया।
“बाबा के नाम?” बगल वाले ताऊ ने पूछा।
फिर तो मुझसे रहा नही गया, मैंने जबाब देने के बजाय उनसे ही उल्टे पूछ लिया, कि बिना मेरे दादा जी के नाम जाने आपलोग मेरे घर पहुंच कैसे गए?, और ये सब जो आप मुझसे पूछ रहे हैं, क्या आप बिना ये सब जाने यहाँ पहुँच गए?, उम्मीद है आप सब जानते होंगे फिर क्यों पूछ रहे हैं। अगर इसलिये पूछ रहे हैं कि लड़का कहीं गूंगा बहरा तो नही है, तो ये तो आपको अबतक पता चल ही गया होगा। और जब पता चल गया है तो क्या मैं चलूं?” मैंने लम्बा लेक्चर झाड़ दिया।
ताऊ का मुंह बंद, सभी हक्के बक्के, ताऊ के बरतुहारी के बीस साल के तजुर्बे में ऐसा उनका पहला अनुभव था।
मैंने विजयी मुस्कान के साथ दादाजी के ओर देखा, मन ही मन खुश होते हुए की चलो अब तो शादी होने से रही, तो दादा जी मुझे एकदम से गुस्से से घूर रहे थे।
मैंने तुरंत अपनी नजरें घुमा ली, समझ गया कि इन सबके जाने के बाद बहुत डांट पड़ने वाली है। आखिर उनकी आशाओं पर पानी जो फिरने वाली थी।
ताऊ जी को मेरे जबाब के सदमे से उबरने में कुछ वक्त लगा, फिर उन्होंने बड़े धैर्य से पूछा,”अच्छा वो सब छोड़िये, आप करते क्या है?”
मैंने सोच रखा था कि अगर उसने कोई भी और प्रश्न किया तो ऐसा जबाब देना है कि वे उठकर चले जाएं।
” लिखते हैं” मैंने धीमे से जबाब दिया।
“बोली बड़ा टेढ़ीयायल है आपका,” मुस्टंडे भाई साहब ने कहा।
बस इतना सुनना था कि मैंने वहां से उठकर चल दिया। अब तो मैं कन्फर्म था कि ये शादी नही हो सकती , मैं मन ही मन सोच रहा था, कि बच गया बेट्टा अबकी बारी, कर चलने की फिर तैयारी।
मेरे घर पहुँचने से पहले मेरे कारनामे की सारी खबर माँ तक पहुँच गयी थी। बहुत डांट सुनी। पर कोई गम ना था, चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। लेकिन ये मुस्कान उस वक्त काफूर हो गयी जब दादा जी ये कहते हुए आये कि, लड़का उनको पसंद है, और उनलोगों ने इतवार को लड़की देखने के लिए बुलाया है। साथ ही उन्होंने माँ से पूछा की “अपने गोंसाई पर कौन सा फूल चढ़ता है?”
“अड़हुल के फूल” माँ ने खुशी से बताया।
“कौन रंग के अड़हुल?” दादा जी ने फिर पूछा।
” लाल रंग के, लेकिन की बात छै?” माँ ने कौतूहल बस जानना चाहा।
” नै कोय बात नै” दादा जी ने कहा और कुटुम्बों को विदा करने को चल पड़े। मैं समझ नही पाया आखिर ये फूल वाला माजरा क्या है।
फिर बाद में पता चला कि लड़की वालों के घर मे गोसाईं पर सफेद अड़हुल के फूल चढ़ते हैं। उनका और हमारा देवता अलग अलग है इसलिये ये शादी सम्भव नहीं है। क्योकि अगर ऐसा हुआ तो उनके देवता नाराज हो जाएंगे। मैंने मन ही मन उस नाराज होने वाले देवता को नमन किया और अपने देवता को धन्यवाद दिया। अगली सुबह गोसाईं पूजन के लिए फूलो की व्यवस्था का जिम्मा मैंने उठाया और लाल अड़हुल से फूलो की डलिया भरकर मां को दिया। माँ बहुत खुश थी और मैं भी।
इस घटना के कई दिन बाद आज जब मेरे कॉलेज गार्डन में सफेद अड़हुल के फूल दिखे तो अनायास ही उस बरतुहारी की बात याद आ गई। धन्यवाद सफेद जावा।