उस रात की हवाओ में,
तैर रही थी एक चंचल खुशबू,
कि वो रेतीली रात थी
सरासर रेगिस्तानी रात,
और मैं मिलों से
प्यासा चला आ रहा था
उस रात चाँद भी
पूरे जोर की आजमाइश कर रहा था
हमें अंधेरे की जरूरत थी
वो चाँदनी की नुमाइश कर रहा था
उस धधकती चांदनी में
तेरे अधरों की चाशनी में
जब इस लब को लब से लगाया
रात खुशबू से सराबोर हो रही थी
उस रात को तुम शायद,
रजनीगन्धा हो गयी थी