जिस दबे कुचले पिछड़े लोगों को महात्मा गांधी ने हरिजन कहा था, अब वो हरिजन नही रहे।
अब आप पूछेंगे की मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, तो मैं ये पहले ही साफ कर देता हूं कि मेरी दलितों के प्रति कोई दुर्भावना नही है। ना ही मैं उनको मिलने वाली सरकारी सहूलियत अथवा आरक्षण के विरोध में ये लिख रहा हूं।
दरअसल हुआ ये है कि इस बार जब मैं गांव गया, तो वहां का सिचुएसन देख के मुझे ये लिखना पड़ा। हाँ तो बात ये है कि जब मैं गांव पंहुचा तो अमिन साहब आये हुए थे।हमारे पुश्तैनी बास के जमीन के बटवारे की बात हो रही थी।ये काम आपसी सहमति से भी हो सकता था, लेकिन जैसा की अभी चारो तरफ अविश्वास का माहौल है, परिवार में भी किसीको किसी पर विश्वास नहीं थी। “बड़का बाबु” जो की मेरे दादा जी भी हैं, अमीन मंगवाने के पक्ष में नही थे, वो चाहते थे की सारा विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिया जाये, लेकिन कोई भी जवनका इस बात को मानने को तैयार नही था। तो अमिन बाबु आये सिकड़ी गिराये, कड़ी कड़ी माप के चार टुकड़े बांटके निकल लिए।
साथ में तीन दिन के पाँच हज़ार रुपये लिए और जम कर ठुसे सो अलग।
अब आप कहियेगा इसमें हरिजन का क्या दोष है, तो सुनिये।
हमलोग का दो जगह बास का जमीन है, एक इनार तर और दूसरा बाबा थान।
इनार तर नौ कट्ठा जमीन कागज पर है लेकिन पकड़ में साढ़े चार कट्ठा यानि कि सीधे आधा। अब आप कहेंगे बाकि के साढ़े चार कट्ठा किधर गया, तो बता दूँ उसमे हरिजन(पासवान) लोग बसे हुए है परचा कटा के,और हमलोगों को उन्हें हटाने की हिम्मत नहीं है। या यूं कहें कि अब वे दबे कुचले नही है, जब वे थे तो दया किये थे, आज स्थिति ये है कि अब हमें उनकी दया पर रहना पड़ रहा है।
अब आते है बाबा थान, तो यहाँ की कहानी कुछ और है।यहां जमीन कागजी रूप से सात कट्ठा है,लेकिन पकड़ में साढ़े पांच कट्ठा है। यहां पर भ हरिजन संकट है। चौधरी दास, वल्द डामर दास, हमारे जमीं का मुहाना छेक कर कुटिया गाड़े हुए हैं। वो सड़क तक जाने के लिए हमे रास्ता देने को तैयार नही हैं।
उनकी पुतोहिया जमीन के आधे हिस्से पर अपना दावा ठोक रही है, कहती है मेरा जमीन पांच धुर कम है, वो दे दिजीये फिर कोई काम होने देंगे। हमलोग नही माने कहा भाई तुम्हारा कम है तो हमारा भी कम है, न हम तुमसे मांगते हैं, ना हम तुम्हे देने वाले हैं। वे जिद पे अड़ गए, अमिन के गड़वाये ईंटे उखाड़ फेंका, और मन मुताबिक ढाठ बांस गाड़ने लगे। हमलोग रोकने पहुचे तो खुद भुइँया लौटने लगे, लोटना पोटना बन्द हुआ तो भाई को फोन लगया, लगे चीखने कनुवा आया मारा रे, हरिजन एक्ट में केस करो।भाई ब्लॉक में है, केस दर्ज कराने गया तो थानेदार ने केस नही लिया, थानेदार जनता था केस झूठा है। भाई भी पहुँच वाला था, पहुच गया हरिजन कोर्ट। हमलोग ने भी पंचायत का सहारा लिया, बड़े बड़े लोग पहुचे। वो घबड़ा गयी,अब केस उठाने के लिए शर्त राखी है कि हमे वो पाँच धुर जमीन चाइये, नही तो कोर्ट में परचा डाल देंगे,और तुमलोग सीधे अंदर जाओगे।
लो बोलो भाई काहे का हरिजन, ठीक बोलता था सरजुग बाभन,”जात स्वाभाव ना छूटे, कुत्ता टांग उठा के मूते”।
काहे का हरिजन, हरिजन अब हरिजन नही रहे।
………..एक हरिजन पीड़ित के कलम से