टन-टन-टन-टन-टन
खड़े-खड़े चाचा मार रहे घण्टी,
चल रही छोटी रेलगाड़ी हन-हन,
सामने बैठी हैं मोटी अंटी,
पकड़ी हुई है तेज रफ्तार,
हम भी हैं उसमें सवार,
तभी चाचा ने ब्रेक है मारी,
हुए अचंभित सभी सवारी,
दे रहें हैं किसीको गारी,
अबे हट, दिखता नहीं है,
क्या तुझे गाड़ी चलाने का होश है,
रगड़ दूंगा तो कहेगा मेरा दोष है,
तभी बगल के चच्चा बोले,
अपना पान थूकने को मुँह खोले,
साले जहां पांव घुसा देते हैं,
जहां से आये हैं वही घुस जाएंगे,
चच्चा और गरम थे,
की पूरे बेशरम थे, चीखे
अबे झांट के बाल,
क्या खुद को समझता है
हरि दास पाल
अटैक का हुआ काउंटर-अटैक
उसने भी दी भरपेट गारी,
फिर आगे बढ़ी अपनी सवारी,
टन – टन – टन – टन,
चली गाड़ी हन-हन
मगर मैं अबतक अपना
माथा नोच रहा था,
ये हरिदास पाल कौन है
यही सोच रहा था,
की बजी घण्टी टन-टन-टन
लो आ गया मेरा स्टेशन,
अब उतरने की तैयारी है,
उतरना बारी बारी है,
बड़े आराम की सवारी है,
की जैसे राम की सवारी है,
कभी लुफ्त जरूर लीजिये
ये कोलकाता शहर के पुराने,
ट्राम की सवारी है।
#कविता_ए_कोलकाता_1
#ट्राम_की_सवारी